ज़िन्दगी से लड़ा हूँ तुम्हारे बिना,
हाशिये पर पड़ा हूँ तुम्हारे बिना,
तुम गई छोड़ कर, जिस जगह मोड़ पर,
मैं वही पर खड़ा हूँ तुम्हारे बिना।
कितनी शोहरत में खेला हूँ तुम्हारे बिना,
कितने तूफान झेला हूँ तुम्हारे बिना,
भीड़ में तो घिरा हूँ मगर सच कहूँ,
हूँ मैं बिलकुल अकेला तुम्हारे बिना।
हर ग़ज़ल में दिखा हूँ तुम्हारे बिना,
गीत में भी लिखा हूँ तुम्हारे बिना,
लोग कहते हैं महंगा हूँ सबसे मगर,
कितना सस्ता बिका हूँ तुम्हारे बिना।
मैंने जीवन गँवाया तुम्हारे बिना,
तुमने कैसे बिताया तुम्हारे बिना,
मैं मुकम्मल किसी को मिला ही नहीं,
मुझको दुनिया ने पाया तुम्हारे बिना।
कि विश पिया हु भी कैसे तुम्हारे बिना,
दिल सियुंगा भी कैसे तुम्हारे बिना,
डोली चढ़ते हुए ये भी सोचा नहीं,
मैं जियूंगा भी कैसे तुम्हारे बिना।
तुमको ही गुन गुनाया तुम्हारे बिना,
तुमको जग को सुनाया तुम्हारे बिना,
तुम तो जी भी लिए गैर के संग मगर,
मैं तो मर भी न पाया तुम्हारे बिना।
गम अकेले ही पाला है तुम्हारे बिना,
खुद पे डाला है तला तुम्हारे बिना,
एक लड़की जो तुम से मिली तक नहीं,
मुझको उसने शम्भाला है तुम्हारे बिना।
….
कि तुमसे पहले तो बिगड़ी हुई बात थी,
तेरे आने से खुशियों की बरसात है,
अब तो मैं कारवां हूँ मगर मेरे संग,
जब कोई नहीं था तो तुम साथ थी।
मैं हूँ अच्छा मगर मुझसे अच्छी है तू,
हो गई है बड़ी फिर भी बची है तू,
झूठ से जगमगाते बुरे दौर में,
तुझको मालूम नहीं कितनी सच्ची है तू।
कि खुद को सबके मुताबिक ही ढाले है तू,
तीन पागल दीवाने पाले है तू,
मैं शम्भाले हूँ आंगन की दीवार-ओ-दर,
मेरे आंगन की कलियाँ संभाले है तू।
कुमार विश्वास
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