नुक्ता चीन है , गम -ऐ -दिल उस को सुनाये न बने
क्या बने बात , जहाँ बात बनाये न बने
मैं बुलाता तो हूँ उस को , मगर ऐ जज़्बा -ऐ -दिल
उस पे बन जाये कुछ ऐसी , के बिन आये न बने
खेल समझा है , कहीं छोड़ न दे , भूल न जाये
काश ! यूँ भी हो के बिन मेरे सताए न बने
खेल समझा है , कहीं छोड़ न दे , भूल न जाये
काश ! यूँ भी हो के बिन मेरे सताए न बने
ग़ैर फिरता है लिए यूँ तेरे खत को कह अगर
कोई पूछे के ये क्या है , तो छुपाये न बने
इस नज़ाकत का बुरा हो , वो भले हैं , तो किया
हाथ आएं , तो उन्हें हाथ लगाये न बने
कह सकेगा कौन , ये जलवा गारी किस की है
पर्दा छोड़ा है वो उस ने के उठाये न बने
मौत की रह न देखूं ? के बिन आये न रहे
तुम को चाहूँ ? के न आओ , तो बुलाये न बने
इश्क़ पर ज़ोर नहीं , है ये वो आतिश ग़ालिब
के लगाये न लगे , और बुझाए न बने
~ मिर्ज़ा ग़ालिब