वफ़ा के ज़िक्र में ग़ालिब मुझे गुमाँ हुआ
वो दर्द इश्क़ वफाओं को खो चूका होगा ,
जो मेरे साथ मोहब्बत में हद -ऐ -जूनून तक था
वो खुद को वक़्त के पानी से धो चूका होगा ,
मेरी आवाज़ को जो साज़ कहा करता था
मेरी आहोँ को याद कर के सो चूका होगा ,
वो मेरा प्यार , तलब और मेरा चैन -ओ -क़रार
जफ़ा की हद में ज़माने का हो चूका होगा ,
तुम उसकी राह न देखो वो ग़ैर था साक़ी
भुला दो उसको वो ग़ैरों का हो चूका होगा !
~ मिर्ज़ा ग़ालिब