मा, मे तुम्हारे आंचल मे खेलना चाहती थी,
पर नहीं खेल सकती, आज मे मजबूर हू
पापा, मे आपकी उंगली पकडकर चलना चाहती थी,
पर नही चल सकती, आज मे मजबूर हू
दादी, हर रात आपसे कई कहनीयां सूनना चाहती थी,
पर नही सून सकती, आज मे मजबूर हू
दादाजी, हर रोज आपके साथ बगीचेमे टहेलना चाहती थी,
पर नही टहल सकती, आज मे मजबूर हू
भैया, हर रोज तुन्हारे साथ मस्ती करना चाहती थी,
पर नही कर सकती, आज मे मजबूर हू
सबकी तरह ईस दुनिया मे आना चाहती थी,
पर नही आ सकती, उस दिन एक मां मजबूर थी
– किंजल पटेल (किरा)