एक औरत ने हमे यह नायाब जीवन दिया,
सही सलीके से जीवन जीना सीखा दिया।
लड़ती है वो रोज खुद से अपनी आज़ादी के लिए,
उसी ने हमे आज़ादी वाले जीवन के यह तोहफ़े दिए।
अक्सर करती है मन ही मन मे बाते हज़ारों वो,
सुनने को हमारी बाते भूल जाती है अपने ही वज़ूद को वो।
खुद की खुशी को कर अनदेखा वो,
हमारी खुशी मे खुशी ढूंढती पायी वो।
खुद के सपनों का घोंटकर गला वो,
हमारे सपने पूरे करने खूब लड़ी वो।
हररोज लड़ती झगड़ती रही समाज मे उसका वज़ूद दिखाने को वो,
बावजूद उसके सम्मान ही है सबकुछ समाज मे हमे सिखाती रही वो।
पता था पता है उसे की मुश्किल है उसका खुशी से जीवन जीना यहा,
वो जानती थी यह वो समाज है जो जन्म लेकर भूल जाए अपनी “माँ” को यहा।
वो जानती थी कठिनाइयों से घिरा है उसका जीवन सारा,
फिर भी हम पर वारा उसने अपना जीवन सारा।
वो जीती रही आँसू छुपाकर दिखावे वाली मुस्कुराहट के पीछे,
आई कभी आंच ना परिवार पर एक वहीं वज़ह थी उसके पीछे।
ना की कदर कभी परिवार ने उसकी जीते जी भी,
टूटने आया परिवार तो हुआ जिक्र उसके अस्तित्व का भी।
वो थी, वो है और वो रहेगी,
वो नारी है एक दिन उसके वज़ूद को साबित करके रहेगी।
उस दिन समाज सही मायने मे “सभ्य समाज” कहलायेगा,
जिस दिन हर एक आँखों पर उसका सम्मान नजर आएगा।
– मयूर श्रीमाली