आंसु…
बिन कहे, बिन पूछे
यूंही निकल आते हैं
बोहोत सताते हैं।
उफ़……..ये आंसु!!!
मेरी आंखे
मेरे आंसु
और मेरा ही कहा नहीं मानते।
बदमाश कहीं के!
पता नहीं,
क्यों मेरे काबू में नहीं रहते।
न मौसम देखते हैं
न मनोदशा,
खुशी में भी निकल आते हैं
और ग़म में भी,
हे भगवान, केसी हैं ये दुर्दशा!!
मन गलती करे तो आंखे रोए
दिल दुखे, तो आंसु बरसे
किसी ओर की करनी का फल
बिचारे मेरे नयन क्यों जेले?
इन सब में
मेरी मजबूर आंखे क्यों रोए?
पर इन अक्षों को बेहने दो,
इन आखों को ज़रा रोने दो,
ये मन को हल्का करे,
ये दिल को सहलाए,
आंसु हमें
सुख के दिनों की
कीमत समझाए।
~