पुरानी खबर की तरह
सिगरेट के कश की तरह
आंखो की पलक तरह
गले में हलक की तरह
बगल की खाली सीट की तरह
चाय में आई हुए मंखी की तरह
तबाह होती बस्ती की तरह
रोज बढ़ती पस्ती की तरह
किताब के मुखपृष्ठ की तरह
मां के आंखो के नीचे हुए काले घेरे की तरह
पापा के ढलते कंधो की तरह
दादी की फूलती सांसों की तरह
और अपने जज्बातों की तरह
तुम मुझे नजरअंदाज कर लेते होना ?
-हिरल जगड़ “हीर”