दादीमाँ की कहानियां
अब वही है उनकी निशानियां
हर एक कहानी थी मन भावन
उन्हें सुनकर बिता सारा बचपन।
“आओ बच्चों, सुनाऊ तुम्हें एक कहानी।”
दादी की यह वाणी, लगती बड़ी सुहानी।
सब दादी को घेर कर बैठ जाते
छोटे, बड़े, सब चाव से सुनते।
कई कहानियां हंसी और मस्ती भरी होती
तो कई बस यूँही हमें रुलाती।
कइयों में होती नैतिक सीख
दादी कर देती हर गड़बड़ ठीक।
कहानियों में कहीं तितलियाँ उड़ती
तो कहीं बंदर ले जाता रोटी।
किसी में भालू खुद को खुजलाता
तो किसी में शेर गुस्से से चिल्लाता।
दादी का उच्चारण बोहोत ही था अद्भुत
हमारा ध्यान पकड़ कर रखता मज़बूत।
न आती नींद, न कोई पलक जपकाता,
बस कहानियां सुनकर मज़ा आ जाता।
बीच बीच में दादी करती अटपटा सवाल
हम जवाब देने को करने लगते धमाल।
कई बार दादी पाप और पुण्य में हमें फ़साती,
चुपके से वह भी हमारे डर का मज़ा लेती।
न जाने कहाँ से लाई थी इतना बड़ा पिटारा
आदत सी हो गई थी…
कहानियों के बगयर न था हमारा गुज़रा।
आज भी लुभा ता है दादी की कहानियों का खज़ाना
आज भी याद आता है वो बचपन का ज़माना।
दादी की सारी कहानियां लिखकर रखली है मैंने
अब अपने बच्चों को सुनाती हूँ, जब वो जाते है सोने
दादी और उनकी कहानियों की आज भी है कीमत
उनकी दी हुई अब अपने बच्चों को देती हूं हिम्मत।
– शमीम मर्चन्ट