में अपनी दोस्ती को शहर में रुस्वा नहीं करती
महोबत में भी करती हुं मगर चर्चा नहीं करती
जो मिलने आ जाये में उसकी दिलसे खादीम हुं ,
जो उठके जाना चाहे में उसे रोका नहीं करती
जीसे में छोड़ देती हुं उसे फीर भुल जाती हुं ,
फीर उसकी जानिब में कभी देखा नहीं करती
तेरा इसरार सर आंखों पर के तुमको भुल जाउं में,
में कोशिश कर के देखुंगी मगर वाअदा नहीं करती
✍ परवीन शाकिर