चमन से उठ के सरे राह आये बैठा हूँ।
न जाने दिल कहाँ अपना गँवाये बैठा हूँ
पलक पे अपनी सितारे सजाये बैठा हूँ
ये किसकी याद को दिल से लगाये बैठा हूँ
तुम्हारी याद से पुरनूर सिर्फ़ दिल ही नहीं
अँधेरी रात को भी जगमगाये बैठा हूँ
जुनूँ है ये कि सनक है कि कैफ़ियत कोई
मैं अपने आप से भी ख़ार खाये बैठा हूँ
ये अलमियाँ है कि उसको मिरी ख़बर ही नहीं
मैं जिसकी राह में आँखें बिछाये बैठा हूँ
चले भी आओ मिरा और इम्तिहान ना लो
मैं अपने जिस्म को आँखे बनाये बैठा हूँ*
✍? सागर त्रिपाठी