कितना हसी हैं मौसमें-बहार आज की शाम,
आ रही हैं आसमाँ से फुआर आज की शाम!
ये बुँदे बारिश की गुमाँ करती होगी खुदपर,
भीग रहा हैं इनमे मेरा यार आज की शाम!
ये ठंडी हवाये, ये फ़िज़ा कहाँ से आ रही हैं,
यूँ भी हैं अपना दिल दो चार आज की शाम!
पूछा था किसी ने ग़ज़ल में मेहनत हैं क्या,
निकली जिस्म से खू की धार आज की शाम!
इन्हें नहाने दे, भीग जाने दे पूरी ही तरह,
रोकना इन्हें होगा नागवार आज की शाम!
उसकी खुशबु आ रही हैं वो पास ही हैं कहीं,
आई हैं हवा लेके उसका तार आज की शाम!
ये खुशनुमा शाम काश यही रुके तो मज़ा है,
ना रुकी तो दिल होगा बेज़ार आज की शाम!
जमीन-ए-हिन्द अगर मांगेगी खून मुझसे,
तो मैं हूँ जान देने को तैयार आज की शाम!
गुनगुना रहे हैं मेरे दोस्त भी गीत बारिश के,
गाकर ये भी हो गये गीतकार आज की शाम!
मैंने एकबार कहा की उठो सब एक हो जाओ,
पसीना-पसीना है सरकार आज की शाम!
जिंदगी हैं दोस्ताना गले सबसे मिलते चलो,
दोस्ती में ना लाओ तलवार आज की शाम!
शायद यूँ मैं बैठ गया हूँ आज बालकनी में,
काश हो जाए उसका दीदार आज की शाम!
चाँद नज़र उतारता होगा मेरी फलक से ही,
दुनिया में हैं कोई कलमकार आज की शाम!
ये शाम हसीन होने का फलसफा हैं शायद,
लिख दिए हैं बहुत अश्आर आज की शाम!
ना ‘तनहा’ किसी को अच्छा लगे ना बेहतर,
क्योकि वो खुद में हैं खुद्दार आज की शाम!
✍ तारिक़ अज़ीम ‘तनहा’