आज बिछड़े हैं, कल का ड़र भी नहीं
ज़िन्दगी इतनी मुख़्तसर भी नहीं
ज़ख़्म दिखते नहीं अभी लेकिन
ठंडे होंगे तो दर्द निकलेगा
तैश उतरेगा वक़्त का जब भी
चेहरा अन्दर से ज़र्द निकलेगा
कहनेवालों का कुछ नहीं जाता
सहने वाले कमाल करते हैं
कौन ढूंढें जवाब दर्दों के
लोग तो बस सवाल करते हैं
कल जो आएगा जाने क्या होगा
बीत जाएँ जो कल नहीं आते
वक्त की शाख़ तोड़ने वालों
टूटी शाख़ों पे फल नहीं आते
कच्ची मिट्टी है, दिल भी, इन्सां भी
देखने ही में सख़्त लगता है
आँसू पोंछे तो आँसुओं के निशां
ख़ुश्क होने में वक्त लगता है
गीतकार : गुलज़ार, गायक : भूपेंद्र, संगीतकार : खय्याम,