घर ही नहीं, दफ्तर भी संभालती है,
वो रोज़ सुबह जल्दी उठ जाती है,
स्कूल में पहले बच्चो को पढ़ाती है,
फिर घर आकर सबको सवारती है,
वो रोज़ सुबह काम पर जाती है,
पति की पसंद को भी मानती है,
सास के पैर भी दबाती है,
कभी कभी राशन भी ले आती है,
कभी कुछ बातों पर झुंझला जाती है,
फिर खुद ही चुप भी हो जाती है,
और हर बात को टाल जाती है,
बच्चो के चक्कर में लेट भी हो जाती है,
फिर दफ्तर पहुंचकर सीनियर्स से डांट भी खाती है,
मगर वो हर रोज़ नौकरी पर जाती है,
बीवी, बहु, मां, हर रिश्ता निभाती है,
वो औरत है, हर जिम्मेदारी बाखूबी उठाती है।
– Mehak Naqvi