मुजे तो बस एक ही लम्हा चाहिए,
और तुम हो कि सात जन्मो की बात करते हो |
जी कर ये लम्हा कर दो ना मुकम्म्ल मेरी आज को,
क्या पता हम कल हो न हो ||
कभी चाहा है कुछ आज तक तुम्हारी हसी के अलावा,
और तुम हो कि सौगात खरीदने की बात करते हो |
छोटी सी हसीं देकर कर दो ना पूरी मेरी ये तमन्ना,
क्या पता हम कल हो न हो ||
मुश्किल है यहां हर किसीको यकीन दिलाना मेरी वफा का,
और तुम हो कि पूरी दुनियाको मनाने की बात करते हो |
बस पहचान के मेरी मुहाब्बत थाम लो ना आज ये हाथ,
क्या पता हम कल हो न हो ||
रख सकते है एक ही पल में तुम्हारे कदमो मे पूरा जहां,
और तुम हो कि एक तोहफा लेने से कतराते हो |
कुबुल कर लो ना एक नाचीज से दिल को आज,
क्या पता हम कल हो न हो ||
जानता हूं नहि है कोई ईरादा तुम्हारा मेरे साथ रहने का,
और तुम हो कि सपनो के जाम पिलाये जा रहे हो |
कल जो ना रहा तो तसवीर में देख के मुजे रो पडोगे तुम
जी लो ना आज का हर पल मेरे संग,
क्या पता हम कल हो न हो ||
– आदित शाह “अंजाम”