कुम्हारन बैठी रोड़ किनारे, लेकर दीये दो-चार।
जाने क्या होगा अबकी, करती मन में विचार।।
याद करके आँख भर आई, पिछली दीपावाली त्योहार।
बिक न पाया आधा समान, चढ़ गया सिर पर उधार।।
सोंच रही है अबकी बार, दूँगी सारे कर्ज उतार।
सजा रही है, सारे दीये करीने से बार बार।।⛈️
पास से गुजरते लोगों को देखे कातर निहार।
बीत जाए न अबकी दीपावाली जैसा पिछली बार।।🌩️
नम्र निवेदन मित्रों जनों से, करता हुँ मैं मनुहार।
मिट्टी के ही दीये जलाएँ, दीवाली पर अबकी बार।।
Agyaat