ग़म छुपाने के लिए दूर तलक जाते हैं,
दिल के जज़्बात कई बार तो थक जाते हैं.
रौशनी में ये ग़म-ए-हिज्र छुपाएं कैसे,
अश्क आँखों में ये मोती से झलक जाते हैं.
तुम से कहने को है इक बात हमारे दिल में,
तुम से मिलते ही कहने से झिझक जाते हैं.
तेरी सूरत पे अब इस चाँदनी को रश्क़ हुआ,
हुस्न के चर्चे तेरे सू-ए-फ़लक जाते हैं.
मुन्तज़िर हूँ कि कभी ख़्वाब तुम्हारा देखूँ,
ख़्वाब आँखों से मेरी दूर अटक जाते हैं.
जाके हसनैन बता हुस्न-ए-परीज़ाद को ये,
रोज़ अब हिज्र में हम मौत तलक जाते हैं.
~अली हसनैन