हों लाख ज़ुल्म मगर बद-दुआ’ नहीं देंगे,
ज़मीन माँ है ज़मीं को दग़ा नहीं देंगे !
हमें तो सिर्फ़ जगाना है सोने वालों को,
जो दर खुला है वहाँ हम सदा नहीं देंगे !
रिवायतों की सफ़ें तोड़ कर बढ़ो वर्ना ,
जो तुम से आगे हैं वो रास्ता नहीं देंगे !
–’ राहत इन्दोरी