तकदीर का है ये तकाजा, या कोई तदबीर है,
पास होकर भी मेरे तू, क्यों इतनी दूर है।
कैसे बीतेंगे पल मेरे, तेरे बिना ए हमनशी,
आंखों में बसी हुई, तेरी ही तस्वीर है।
कैसे चुकाऊंगा तुझे, हिसाब पिछले जन्मों का,
तेरे ही नाम की मेरे, हाथों में लकीर है।
इससे ज्यादा क्या कहूं में, तू ही बता ऐ जिंदगी,
वैसा ही हूं प्रेम में, ग़ज़लों में जैसे मीर है।
दिपेश शाह