तुम हस्ते हो तो फूलोंकी अदा लगते हो
और चलते हो तो इक बाद-साबा लगते हो.
कुछ न कहेना मेरे काँधे पे झुका के सर को
किनते मासूम हो तस्वीर-ए- वफा लगते हो.
बात करते हो तो सागर से खनक जाते हो
लहर का गीत हो कोयल की सदा लगते हो.
किस तरफ जाओगे जुल्फों के ऐ बादल लेकर
आज मचली हुयी सावन की घटा लगते हो.
तुम जिससे देखलो पीने की जरूरत क्या है?
जिंदगीभर जो रहे ऐसा नशा लगते हो.
मेने महसूस किआ तुम से जो बाते करके
तुम जमाने में जमाने से जुदा लगते हो.
– ‘ईशान’ विराणी