दीवार पर लगा हुआ शीशा उतार दे
जाकर वहाँ तू अपना ये चेहरा उतार दे !!
वो अपने आप को ही न पहचान पायेगा
तन्हाई में जो चेहरे से चेहरा उतार दे !!
वाक़िफ़ नहीं हूँ शहर के रस्तों से मैं अभी
चल ऐसा कर कि हाथ पे नक्शा उतार दे !!
बेख़ौफ़ होके आया हूँ साहिल पे आज मैं
हो जिसको शौक़ मुझमें वो दरिया उतार दे !!
मुद्दत से बीच तारों के तन्हा जो रह रहा
उस चाँद का भी कोई तो सदका उतार दे !!
चुपचाप मैं यहाँ से यूँ ही लौट जाऊँगा
तू अपनी खिड़कियों से जो परदा उतार दे !!
न जाने कितने निहाँ राज़ खुलेंगें
तू आँख पर से धूप का चश्मा उतार दे !!
~ . यूसुफ़ रईस