चौराहों पे यह हुस्न का बाजार तो देखो,
दौलत से पनपता हुआ ये प्यार तो देखो….
ज़रदार के पीने की रवायत है यह माना,
मुफलिस के उजड़ते हुए घर बार तो देखो….
मुजरिम को ही देती है पुलिस जा के सलामी,
रक्षक है मगर उसका यह किरदार तो देखो……
मजबूरी-ऐ-हालात में बिकती है जवानी ,
इस दौर के इंसान का मेयार तो देखो….
कुर्सी के लिए मुल्क में करवाते हैं दंगे,
उफ़ आज के नेताओं का किरदार तो देखो…..
आदर्श यहाँ कौन किसी का है मददगार ,
नफरत की उठी कितनी है दीवार तो देखो……
–आदर्श बाराबंकवी