हमारी नजर में जो बदकाम है
नये दौर का ये फैल आम है
वकत ने जीने का बदला नजरीया
तहजिबे नौ का ये इकदाम है
बचाते रहे खुद को जीस बात से
जमाने में उसका चलन आम है
यहां शौक से हर शख्स पहचाना जाये
हर इक फर्द फितरत का गुलाम है
नये रंग लाया नया दौर मासूम
जहां मे तगय्युर शुब्हो- शाम है
मासूम मोडासवी