पत्थरों में खुद नहीं मिलता
हुश्न अब बावफा नहीं मिलता
जिस्म के लग चुके हैं दाम अब तो
दिल को इक दिलरुबा नहीं मिलता
आँखें रख दी हैं हमने रस्तों पर
फिर भी तेरा पता नहीं मिलता
रोड पे क़त्ल आदमियत है
शख्स कोई भला नहीं मिलता
दिल की बातों पे मत यकीन कर यार
दिल सा तो बावला नहीं मिलता
रोज रोटी की दौड़ ये गुमनाम
भूख का घर पता नहीं मिलता
✍ गुमनाम पिथौरागढ़ी