आंसुओ की बारिश निकली थी,
खुद ही की साजिश निकलीं थी।
यु जनाजा निकला था उनका,
कि कफ़न में ख्वाइश निकलीं थी।
उनकी रग रग से वाकेफ था मैं तो,
जाने क्या गुंजाइश निकलीं थी!
इक दफा भी मन की ना हो सकी,
बात बात में बंदिश निकलीं थी।
जिन के लिए जान गंवाई अक्ष,
उन के मन ही रंजिश निकलीं थी।
– अक्षय धामेचा