फिर तेरी याद नये दीप जलाने आई
मेरी दुनिया से अंधेरों को मिटाने आई
ना कोई दर्द ना अब दर्द का एहसास रहा
युँ लुटा हूं मैं के कुछ भी मेरे पास रहा
मेरी बरबादी पे ये अश्क़ बहाने आई
फिर तेरी याद नये दीप जलाने आई
इन बुज़ी आँखों के हर ख़्वाब की ताबीर गई
जल उठा मैं जो मेरे प्यार की तहरीर जली
मेरे दामन में लगी आग बुझाने आई
फिर तेरी याद नये दीप जलाने आई
आई तेरी याद.…
सोग में डूबी हुई लगती है खामोश फ़िज़ां
इतना तन्हा ना कीसी शाम किसी रात रहा
मेरी तन्हाई को सीने से लगाने आई
फिर तेरी याद नये दीप जलाने आई
~ . नक़्श लायलपुरी