मेरे सामने आ गये बन संवर के
बढे होसले देख मेरी नजर के
मुक्द्दर से पाई रिफाकत के सदके
रही बात अपनी तो हदसे गुजर के
चलो आज हम उस लगी को उतारें
बचायें नजर को जद से भंवर के
चाहत के अरमां जगाये जो तुमने
सपने सजे हैं नई इक सहर के
मेरा साथ देकर वफाको निभाया
भला हम जिये क्युं जमाने में डर के
मेरा उनपे मासूम भरोसा बढा है
जवां होसले हैं मेरे हम सफर के ।
मासूम मोडासवी