रंग था जिसके इक तबस्सुम से,
वो भी रहने लगे हैं गुमसुम से |
आईने का कमाल है ये भी,
बचता रहता है हर तसादुम से |
अब मोहब्बत का जिक्र मत छेड़ो,
अब तो नफरत भी हो गई तुम से |
खुशबुओं के चिराग जलने लगे,
आप के फूल से तकल्लुम से |
जिसका लहरों पे नाम लिखा हो,
वो डरेगा किसी तलातुम से ?
बारिशों में यह पेड़-पौधे भी,
बात करते हैं सब तरन्नुम से |
जैसे खामोशियों का सहरा हो,
दुख हुआ आज मिल के ‘अंजुम’ से |
✍ डॉ.अन्जुम बाराबंक्वी