वो कहते है की हमें दर्देगम मुफ्त में मिलते है।
उन्हें क्या मालूम कितने संबंध शूली पे चढ़ते है।।
हम छुपाते है उनसे अपनी ज़िंदगी के सारे गम।
तब जाके उनके चहेरे पे हंसी के फूल खिलते है।।
हमें ना मिला हो ऐसा इस जहां में कोई दर्द नहीं।
उन्हें पता ही नहीं जो खुद को हमदर्द कहते है।।
आंखों से भांप लेते है वो हमारी खेरियत लेकिन।
खुश्क आंखों से क्या अश्क तो दिल से बहते है।।
~ दिपेश शाह