वो निरंजन निराकार आज भी मिलता है
टूटे हुए सपनोको जोड़नेमे,
गिरकर, संभलकर फिर से दोड़नेमे
वो निरंजन निराकार आज भी मिलता है
किसी अंजानकी छिपी हुई पहचान में,
किसी नन्हे बच्चेकी मासूम मुस्कानमे
वो निरंजन निराकार आज भी मिलता है
दुआ के लिए उठे हुए हाथों में,
प्राथना के लिए बंध हुई आंखों में
वो निरंजन निराकार आज भी मिलता है
मन को समाधि मिले ऐसे भावमे,
सच्चे गुरुके प्रति अहोभाव में
वो निरंजन निराकार आज भी मिलता है
ह्रदय से उठे प्रेम के अहेसास में,
अपनी हर इक सांस में
वो निरंजन निराकार आज भी मिलता है
जिसने उसे एहसास में महसूस कर लिया,
मान लो
उसने पूरा भव जी लिया।।
~ . दिपेश शाह