मिली नहीं यूं ही आजादी इस वतन को सींचा है अपने खून से शहीदों ने इस चमन को
पहन लूं कांटों का ताज मादर ए वतन के लिए
और बहा दूं अपना लहू इस चमन के लिए,
कुछ अलग रौनक है सहर में इसकी,
आती है खुशबू मिट्टी से जिसकी
क्या ही कशिश है सुबह ओ शाम में मेरे वतन की
मांगता हूं दुआ हिफाजत की गुलिस्तान ए चमन की,
रहेगी हमेशा “हिंद” के लिए उल्फत मेरी फक्र से कहता हूं है ये मिल्लत मेरी
आन बान शान से करूंगा हिफाजत इस गुलिस्तान की
झुकने ना दूंगा “खान” कभी शान हिंदुस्तान की
कभी शान हिंदुस्तान की….
– khan_saab