सफ़र में रोशनी की जब दुआएँ माँगता हूँ…!!!
मैं अपनी माँ के क़दमों से ज़ियाएँ माँगता हूँ…!!!
मुझे महसूस होता है कि हूँ मैं क़र्बला में…!!!
मैं अपने भाईयों से जब वफ़ाएँ माँगता हूँ…!!!
दरख़्तों के हज़ारों दर्द उग जाते हैं मुझमें…!!!
नए पौधों से जब ताज़ी हवाएँ माँगता हूँ…!!!
सज़ाएँ दूसरों की अब तलक़ काटी हैं मैंने…!!!
मैं अब अपने गुनाहों की सज़ाएँ माँगता हूँ…!!!
न मक्का ही गया हूँ मैं न जा पाया मदीना…!!!
मगर मैं हाजियों के संग दुआएँ माँगता हूँ…!!!
तआस्सुब के घने बादल नहीं दरकार मुझको…!!!
ख़ुदाया मैं तो रहमत की घटाएँ माँगता हूँ…!!!
निगाहें उनपे अपनी इसलिए रख़ता हूँ यारो…!!!
परिंदों से मैं उड़ने की अदाएँ माँगता हूँ…!!!
~ . सुरेन्द्र चतुर्वेदी