जो लोग महोबत का जज्जा नहीं रखते
हम उनसे कोई अपना रीश्ता नहीं रखते
कभी अपने बडे पन का चर्चा नहीं करते
ओर बात कोइ अपनी पीन्हां नही रखते
है जिंदगी अपनी इक खुली किताब सी
जीते हैं खुले दिल से हम पर्दा नहीं रखते
चलता है जमाने मे कैसा ये चलन देखो
फितरत के फरेबी मन उजला नहीं रखते
फैली है जमाने में हर सीम्त रियाकारी
गुफतार में लेकिन कद नीचा नहीं रखते
बस अपना भला चाहे सबका बुरा करके
दिल जैसा है अयसा चहेरा नहीं रखते
मासूम गुनाहों में युं डूब गये तुम देखो
इन्सान से हमदर्दी का रीश्ता नहीं रखते
मासूम मोडासवी