हर तरफ तबाही के मन्ज़र बोहत है
ख़ुश्क आँखों मे भी समंदर बोहत है
हुकूमत कह रही है दंगो मे नुकसान नहीं हुआ
मगर बस्ती मे तो जले घर बोहत है
उन्हें रहनुमा कैसे तस्लीम कर ले
जो बाख़बर थे अब बेखबर बोहत है
मुझसे मिलते ही समन्दर नहीं करता गुरुर
इन आँखों मे उस जेसे समन्दर बोहत है
तख्तो ताज हुकूमत टोकरों मे रखते है
हम जेसे इस ज़माने मे कलन्दर बोहत है
वक़्त के साथ साथ जो चल न सके
ऐसे लोग आज दरबदर बोहत है
वो है जो अमन की ज़बान समझता ही नहीं
हमने फिर भी उड़ाये कबूतर बोहत है
हमारी जान तो उसने मोहब्बत मे ही ले ली
वेसे तो उसके पास खंज़र बोहत है
हँसते हँसते वतन पर जो कुर्बान हो जायें
मेरी कौम मे अभी ऐसे सर बोहत है
मेरा कलाम पढ़ के वो ये कहने लगा
ग़ालिब जेसे आज भी सुखनवर बोहत है
मेरे आका का मरतबा सबसे ऊंचा है
यूँ तो ज़माने मे आये पयम्बर बोहत है
जिसने भी सच की राह दिखलाई अज़ल से
ज़माने ने किये जुल्म उस पर बोहत है
आंधिया भी जिनका कुछ ना बिगाड़ पायी
हमारे आस पास ऐसे शज़र बोहत है
जिसे आदत है फूलो की मेरा साथ क्या देगा
मेरे घर तो काँटों के बिस्तर बोहत है
गुनाह पे गुनाह करने के बावजूद
उसकी नज़रे करम हम पर बोहत है
तुम अकेले ही नहीं थे सुन लो मियां
जंगेआजादी मे कटे हमारे भी सर बोहत है
तुम भी तो साबित करो कभी वफादारी
इल्ज़ाम तो तुम्हारे भी सर बोहत है
आसान नहीं है वसी इश्क़ की राहें इनमे
कँही ठोकरें तो कँही पत्थर बोहत है
✍ वसी सिद्दीकी