आखरी बार ये किरदार निभाने देना।
मेरी मैयत पे उसे अश्क बहाने देना।
जब हंसा हूँ मैं सभी को सुना के किस्सा-ए-गम
रोकना टोकना ना मुझको, हंसाने देना
अफसरी, डॉक्टरी जो भी पढ़ाना लेकिन
नई नस्लों को पतंगें भी उड़ाने देना
कब्र पर मेरी कोई पेड़ लगा देना तुम
और बच्चों को मेरी शाखें हिलाने देना
आज कल के नए लड़के भी गजब कहते हैं शेर
वो अगर शेर सुनाए तो सुनाने देना
घर के बूढ़ों को ना बतलाना बुढ़ापा है क्या?
साथ बच्चों के उन्हें दौड़ लगाने देना
बाद में वह गले लग जाए ये उसकी मर्जी।
मैं फकत हाथ बढ़ाऊंगा, बढ़ाने देना
वो है मासूम, कोई बेर ना रखना उनसे
क़त्ल ना करना उन्हें दुनिया में आने देंना
आज वो माँकी दुआ ले के यहाँ आया है
वो मुझे आज हराये तो हराने देना
~ अकिब खान