दो नावों पर पाँव पसारे ऐसे कैसे
वो भी प्यारा हम भी प्यारे ऐसे कैसे
सूरज बोला बिन मेरे दुनिया अंधी है
हँस कर बोले चाँद सितारे ऐसे कैसे
तेरे हिस्से की ख़ुशियों से बैर नहीं पर
मेरे हक़ में सिर्फ ख़सारे ऐसे कैसे
गालों पर बोसा दे कर जब चली गई वो
कहते रह गए होंठ बिचारे ऐसे कैसे
मुझ जैसों को यां पर देख के कहते हैं वो
इतना आगे बिना सहारे ऐसे कैसे
जैसे ही मक़्ते पर पहुँची ग़ज़ल असद की
बोल उठे सारे के सारे ऐसे कैसे
~ असद अकबराबादी