रौशनी की ये हवस क्या क्या जलाएगी न पूछ
आरज़ू-ए-सुब्ह कितने ज़ुल्म ढाएगी न पूछ
होश में आएगी दुनिया मेरी बे-होशी के बा’द
मेरी ख़ामोशी वो हंगामा मचाएगी न पूछ
नस्ल-ए-आदम रफ़्ता रफ़्ता ख़ुद को कर लेगी तबाह
इतनी सख़्ती से क़यामत पेश आएगी न पूछ
दरमियाँ जो जिस्म का पर्दा है कैसे होगा चाक
मौत किस तरकीब से हम को मिलाएगी न पूछ
जिस्म इजाज़त दे ही देगा पर सिमट जाने के बा’द
रूह कैसे इस क़फ़स को घर बनाएगी न पूछ
अभिनंदन पांडे