मैं कब कहता हूँ वो अच्छा बहुत है..
मगर उसने मुझे चाहा बहुत है..
खुदा इस शहर को महफ़ूज़ रखे
ये बच्चो की तरह हँसता बहुत है..
मैं हर लम्हे मे सदियाँ देखता हूँ
तुम्हारे साथ एक लम्हा बहुत है..
मेरा दिल बारिशों मे फूल जैसा
ये बच्चा रात मे रोता बहुत है..
वो अब लाखों दिलो से खेलता है
मुझे पहचान ले, इतना बहुत है..
~ डॉ बशीर बद्र
Dr. Bashir Badr