सूना पड़ा है दिल का मकाँ आप के बिना
रह रह के उठ रहा है धुआँ आप के बिना
यूँ तो खिले हैं फूल कई रंग के मगर
फीके पड़े हैं दोनों जहाँ आप के बिना
ये सोच के मैं घूम रहा हूँ यहाँ वहाँ
राहत मिलेगी दिल को कहाँ आप के बिना
बस इस लिए ही गाँव से मैं शहर आ बसा
मैं क्या करूँगा रह के वहाँ आप के बिना
‘आदर्श’ कह रहा है कि मत आओ मेरे पास
बर्बाद हो गया हूँ यहाँ आप के बिना
आदर्श दुबे