दुनियाँ से इक फकीर का मोह हट गया।
दौलत के आगे इंसां का कद इतना घट गया।
भाई से जीत ली मुकदमे में सब जमीं।
दो गज में वजूद मेरा सारा सिमट गया।
तरक्की के बाद जब मैं शहर से लौटा।
देखा कि मेरा गांव सड़कों में कट गया।
मेरा आशियाँ ना लूटो कहकर रो पड़ा।
कटते दरख्त से एक पंछी लिपट गया।
परवरिश ताउम्र एक साथ की सबकी।
एक बाप कई बेटों के बीच बँट गया।
कल की तलाश में खो बैठे आज भी।
जीवन इसी तरह अमित सारा निपट गया।
अमित शुक्ला