पहले भँवर से कश्तियाँ बाहर निकाल तू
फिर चाहे जितना आग का दरिया उछाल तू
मैं कब से इंतज़ार में हूँ ख़ुद जवाब के
क्यूँ कर रहा सवाल -दर मुझ से सवाल तू
है दौर मुश्किलों का तो, जायेगा ये गुज़र
किस बात पे करे है , यों रंजो – मलाल तू
मौसम की मार से न, बरबाद हों कहीं ये
फ़सलें खड़ी जो खेत में, उनको सम्भाल तू
तू रुत ख़रीद डाले , मौसम बदल के रख दे
करता है किस तरह ये ,इतना कमाल तू
तेरी कोशिशें अंधेरा , मेरी ज़िद है रोशनी की
आख़िर बुझायेगा यों , कब तक मशाल तू
– कृष्ण बक्षी