खिड़की से इक विरहन
निहारती थी टुकुर-टुकुर
उमड़ते-घुमड़ते आवारा मेघों को
अचानक उसकी नज़रें रुक गयी
बादल के एक टुकड़े पर
जमीन पर उतरा है जो अभी-अभी
शोख चंचल अंदाज़ उसका
बदन से टिप-टिप गिरता पानी
किस प्रयोजन से आया है
किससे मिलने आया है
क्या अपने दिल को ढूंढने आया है
या फिर मेघदूत बनकर
बादल का वह टुकड़ा
विरहन के कानों में
उड़ गया कुछ बुदबुदाकर
विरहन का चेहरा खिल उठा
घूंघट में मल्लिका बन शर्माने लगी
कपोलों पर गुलाबी रंग की लहरें
अधरों से जैसे मधुरस टपकने लगा
शायद बादल का वह टुकड़ा
आषाढ़ में उसके दिलवर
कालिदास का पैगाम लाया था
तुम हस्ते हो तो ..
तुम हस्ते हो तो फूलोंकी अदा लगते हो और चलते हो तो इक बाद-साबा लगते हो. कुछ न कहेना मेरे...