तेरी कश्तियों के सहारे चलने की हमे आदत सी हो गई थी,
पर उन कश्तियों को किनारा मिल गया।
तेरी नज़रों से इश्क करने की हमे आदत सी हो गई थी,
लेकिन उन आंखो को कोई तारा मिल गया।
मेरे लम्हों के कत्ल को संभालने को आदत सी हो गई थी,
क्युकी शायद मुझे उस चोट का मरहम मिल गया…
तुम अक्सर ढूंढते थे मेरी कोशिशों में कमियां,
उन खामियों में तुम्हे छोड़ जाने का इशारा मिल गया।