चुपचाप रहती है पर राज़ सारे खोल देती है
पी जाती है सारे ग़म मेरे स्याही के साथ,
कलम बयां कर देती है दर्द वाहवाही के साथ |
मयकदा इश्क़ और मयखाना आंखें उनकी,
अश्कों को भी बयां कर देती है सुराही के साथ,
कलम बयां कर देती है दर्द वाहवाही के साथ |
चाक चौबंद पैग़ाम-ए-मोहब्बत, हरकत-ए-हर्फ
नफरतें सब धुआं कर देती है गवाही के साथ,
कलम बयां कर देती है दर्द वाहवाही के साथ |
कभी खुशियां, कभी ग़म, कभी जख्म, कभी मरहम,
हर गुफ्तगू कर लेती है मेरे इलाही के साथ,
कलम बयां कर देती है दर्द वाहवाही के साथ |