आज फिर लिखा तुजे वो कागज़ रंगीन हो गये,
अरसे से पड़े वो संगीन ज़ख्म कुछ हरे हो गये |
तेरी यादों से तो रोज़ कुछ यूं मुलाकातें रही,
बस एक तुजे आये हुए ज़माने हो गये |
हम तो हैं इक आवारा सी शायरी जैसे,
बस लिखे गए और मशहूर हो गये |
क्या है रब्त के तेरी जुस्तजू खत्म नही होती,
आ जरा देख तेरी बंदगी मैं आज पीर हो गए |