वो सूखे पेड़ मे जान कहा ,
किसान के पसीने बिना अनाज कहा ।
हर दिन वो सुनहरा सवेरा कहा ,
किसी दिन रोटी तो किसी दिन भूखा रहा ।
शहेर मे इतना गुमान कहा,
वही गांव के दर्द का पता कहा।
गर्मी , सर्दी उसने देखी कहा ,
बच्चे आज भी उनके रोते यहां ।
बेहाल है उनका महोल्ला, वो किसी को परवाह कहा
वही उलझनो व कश्मकश से आज भी वो लड़ता रहा ।
खेती पर वो आज तक निर्भर रहे ,
पर पता नही वो क्यू बरबाद होते रहे।
कुछ हिम्मत जुटा के बोलने है जा रहे ,
फिर क्यू लोग उन्हे अनसुना करते रहें ।
हक उन्हे भी मिलने चाहिए हमारी तरह ,
आज सारा भारत बोलेगा एक किसान की तरफ ।