मैंने पुराने ख़त पढ़े,
पुरानी तस्वीरें भी देखी,
जायज़ा लिया फ़िर से
पुरानी मोहब्ब्त का,
मानो एक चक्कर लगाया मैंने
और नापी
हम दोनों के बीच की दूरी..
पता चला की
कोहरे में जैसे धुंधला दिखता है
ठीक वैसे ही था हमारा रिश्ता भी,पुराने ख़त
सब कुछ वैसे का वैसा ही था
बस थोड़ा मौसम बदला था
जो शायद
ठीक होने जा रहा था
अंदर से इक टीस उठी
और तुम्हारी कमी चुभने लगी
अंदर तक..
तुम आओगे की नहीं मालूम न था,
पर
पता नहीं फ़िर
क्या सोचा मैंने…
और
आज सुबह की चाय
के ठीक बगल में मैंने
फ़िर से
तुम्हारी कॉफ़ी रख दी
और इक बार फ़िर से
हालातों की धुंध हटते ही
तरोताजा महसूस लगने लगा था,
हमारा रिश्ता भी और
कोहरे के बाद की
रोशन सुबह भी….
मुसीबत में साथ खड़े थे
मुसीबत में साथ खड़े थे। सच मैं वो ही शख्स बड़े थे। उसकी ही कमजोर जड़े थी, जो रिश्ते कमजोर...