महकती भी हूं, चहकती भी हूं।
कुछ यूं तेरे अक्स को मैं मिटाती भी हूं।।
गाती भी हूं, गुनगुनाती भी हूं।
कुछ यूं तुझे मैं भुलाती भी हूं।।
मुस्कुराती भी हूं, जिंदगी आगे बढ़ाती भी हूं।
कुछ यूं तुझे मैं खुद में ही छुपाती भी हूं।।
पर,
सिहर जाता है मन अक्सर,
जब ख्याल तेरा आता है।
हर सांस में जब मन
तेरी ही खुशबू को पाता है
तेरी ही खुशबू को पाता है।।
~
अमिता गाँधी