भारती की आरती में अपने शीश की आहुति देकर,
ये कैसा घनगोर वो समर कर गए,
कैसे चुकाएं उसके मूल्य को हम,
जो तिरंगे को ओढ़ निज को अमर कर गए!
कारगिल की क्या बात बताऊ..
दृश्य बहुत भयानक था,
लड़ रहा वहाँ हर एक योद्धा,
नायक नही महानायक था।
जिसका नाम ही तोप के नाम पर रखा,
वह गोली बारूद से क्या डरता,
स्वयं नरसिंह का स्वरूप वह
उन भेड़ियों के हाथों क्या मरता… ,
छाती फाड़ भेड़ियों की उसने रणचण्डी की प्यास बुझाई थी,
वीर जब वीरगति को हुआ प्राप्त…
स्वर्ग से स्वयं अप्सरायें उसको लेने आयीं थी।
कारगिल घाटी में वीरों ने शत्रु को धूल चटाई थी, पाकिस्तानी चूहों की चुन चुन के बली चढ़ाई थी।
उन भेड़ियों के गालों पर
जो जड़ा जोरदार झापड़ था,
वह अमर शहीद भारत माता का सपूत
कै.विजयंत थापर था ।
दृश्य
गोली, बम,बारूद की वहां बरसात हो रही थी,
शौर्य, स्वाभिमान, और बलिदान की
वहाँ बस बात हो रही थी।
Same कुरु-क्षेत्र वाला दृश्य दिख रहा था,
लहू से लथपथ सैनिक अपना अंतिम पत्र लिख रहा था।
माँ.. माँ शरहद पर घने घनघोर घन छाएं हैं,
कुछ पाकिस्तानी भेड़िये शरहद पार कर आएं हैं।
वक्त आ गया है माँ..हमे अपना फर्ज निभाना है,
घर में घुसे घुसपैठियों को लोहे के चने चबवाना हैं।
तोरोलिंक को फ़तह किया अब 3पिम्पल पर चढ़ रहा,
लिखी दो पंक्ति फिर माँ को और वीर आगे बढ़ रहा।
माँ तेरा लाडला रणक्षेत्र में अभी घायल हुआ हैं,
देख मेरा रौद्र रूप शत्रु भी कायल हुआ हैं।
वीरता में दक्ष माँ मृत्यु है समक्ष पर लाडला तेरा तनिक भी डर नही है,
गर्व करना माँ तुम खुद पे..
क्योंकि अमर हुआ है लाडला, लाडला तेरा मर नही है।
ये अमर तिरंगे तेरा रंग धुंधला ना पड़े,
इसलिए आज शीश दान दे रहा हूँ मैं…
सदा बना रहे आन,मान शान,स्वाभिमान तेरा..
इसलिए आज देह दान दे रहा हूं मैं…
दृश्य वहाँ अनोखा कुछ ऐसा हो रहा था,
तिरंगे से लिपटकर सैनिक शान से सो रहा था।
यम की आंखे भी नम थी समझ न आए किसी को की यह क्या हो रहा था,
देखा पहली बार तिरंगा भी सैनिक से लिपटकर फुट फुट कर रो रहा था।
*बेटे को माँ का उत्तर*…
*
पुत्र ऐसा नही की तेरी शहादत का मुझको शोक नही,
पर तेरी शहादत पर आँशु बहाऊ
इतनी कमजोर मेरी कोख नही..
देश से बड़ा कोई धर्म नही ना माँ से बड़ा विधाता हैं,
मैं तो बस तेरी जननी रे पालनकर्ता भारत माता है।
*जय हिंद..*
– Satyam Pandey