कल जब उठकर काम पर जा रहा था,
तब अचानक लगा कि कोई रोक लेगा मुझे,
और कहेगा की खड़े-खड़े दूध मत पी हजम नहीं होगा,
दो घड़ी सांस तो ले ले,
इतनी ठंड और कोर्ट भूल गया,
इसे भी अपने साथ ले ले।
मुझे लगा कि मां रसोई से बुला रही होगी,
जिनके हाथों में गेंहू का आटा होगा लेकिन,
जब पलट कर देखा तो क्या मालूम था वहां पे सन्नाटा होगा,
जिस आज़ादी के लिए मैं तुझसे सारी उम्र लड़ता रहा,
वह सारी आज़ादी मेरे पास है,
फिर भी ना जाने क्यों दिल की हर धड़कन उदास है,
आज तमाम खुशियां ही खुशियां है,
गम यह नहीं है कि कोई भी खुशियां बांटने वाला होता,
पर कोई तो होता जो गलतियों पर डांटने वाला होता,
कहता था ना तुझसे में,
वही करुगा जो मेरे जी मे आएगा,
आज में वही सब कुछ करता हु जो मेरे जी मे आता है
बात यह नहीं है कि मैं जो चाहे करलू,
मुझे कोई रोकने वाला नहीं है,
बात तो सिर्फ इतनी सी है कि,
सुबह देर से उठू ना तो कोई टोकने वाला नहीं है ,
रात को देर से लौटू तो कौन नाराज होगा भला,
कौन कहेगा बार-बार कि अब कहां चला,
मेरे वह झूठे सारे बहाने कौन देगा,
कौन कहेगा कि इस उम्र में क्यों परेशान करता है,
हे भगवान यह लड़का क्यों नहीं सुधरता है,
पैसे कहां खर्च हो जाते हैं तेरे,
ये क्यों नहीं बताता है मुझे… सारा सारा दिन क्यो मुझे सताता है,
रोज रात को देर से आता है
खाना गरम करने के लिए जागती रहूं मैं,
खिलाने को तेरे पीछे भागती रहू में,
मां अगर तू होती ना तो हाथ फेरती सर पर,
आवाज देकर सुबह उठाती,
पिताजी की डांट का डर दिखाती,
पिता की डांट से तू ही बचाती ,
बहन को सताता तो तू चांटे मारती,
बीमार पड़ता तो रो-रोकर नजरें उतारती,
मैं नौकरी करू.. मैं तरक्की करू.. इसी दुआओं में हाथ उठाती,
और तरक्की के लिए घर छोड़ देगा शहर छोड़ देगा,
यह सोचकर दीवाल के पीछे छुप कर आंसू बहाती,
सब कुछ है मां ! सब कुछ,
आज तरक्की की हर रेखा तेरे बेटे को छू कर जाती है,
लेकिन आज पता नही क्यों मा,
मुजे तेरी बहुत याद आती है,
~ शैलेश लोढा