यादों का नज़राना
हमें साथ रहेते गुज़र गया एक सदियों भरा ज़माना,
आज आपकी खिदमत में पेश हैं उन्हीं यादों का नज़राना।
वो पहेली मुलाकात में आपका मलकाना,
बस वहीं से शुरू हुआ हम दोनों का अफसाना।
आपकी महकती काली ज़ुल्फ़ों का लहराना,
और कजरारी आंखों का यूँ शर्माना।
आपका दबे होठों से मुस्काना,
हमे लुभाने का था अच्छा बहाना।
वाह जनाब! आपका अपनी खूबसूरती पर इतराना,
उफ़ वो नखरे! आपकी अदाएँ थी बड़ी कातिलाना।
आपकी मीठी बाते, आपके साथ वो समाना,
फिर तो चलता रहा हमारा मिलना मिलाना।
“ज़रा बैठो, कुछ देर बाद चले जाना।”
आपके यही अल्फ़ाज़ लगते थे शायराना।
ज़िन्दगी भर चला हमारा रूठना मनाना,
पुरनूर सुकून है, आज भी है आपके दामन का आशियाना।
कसम है आपको, हमेशा साथ निभाना,
आप ही हो मेरे दिल का खज़ाना।
बेइंतेहा खुश हूं, की हमने साथ गुज़ारा एक सदियों भरा ज़माना,
पेशे खिदमत है, उन्हीं यादों का नज़राना।
शमीम मर्चन्ट,